लुधियाना, 19 दिसंबर, 2025 (संजीव आहूजा): मिर्गी (एपिलेप्सी) एक आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जो हर उम्र के लोगों को हो सकती है। इसके बावजूद, इसे लेकर समाज में आज भी डर, गलत धारणाएँ और भ्रामक मान्यताएँ फैली हुई हैं—खासकर पंजाब में, जहाँ सांस्कृतिक विश्वास और अंधविश्वास स्वास्थ्य से जुड़े फैसलों को प्रभावित करते हैं। इन गलतफहमियों की वजह से बीमारी की पहचान देर से होती है, सही इलाज नहीं मिल पाता और मरीज व उनके परिवार को मानसिक व सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस जानकारी का उद्देश्य सही मेडिकल जानकारी फैलाना, समय पर इलाज को बढ़ावा देना और मिर्गी को वैज्ञानिक और संवेदनशील दृष्टि से समझने के लिए प्रोत्साहित करना है।
फोर्टिस हॉस्पिटल, लुधियाना की एसोसिएट कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. इरा चौधरी कहती हैं कि मिर्गी कोई मानसिक बीमारी, कमजोरी, या किसी तरह की बुरी शक्ति या पिछले कर्मों का नतीजा नहीं है। यह दिमाग में असामान्य विद्युत गतिविधि के कारण होने वाली एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। मिर्गी से व्यक्ति की बुद्धि, स्वभाव, भावनाएँ या सामान्य जीवन जीने की क्षमता पर असर नहीं पड़ता। सही जाँच और इलाज से मिर्गी को नियंत्रित किया जा सकता है। समाज में जागरूकता होने से समय पर डॉक्टर से सलाह, इलाज का सही पालन और मरीजों को सामाजिक सहयोग मिल पाता है।
दौरे (सीज़र्स) कई तरह के हो सकते हैं और हमेशा बहुत तेज या डरावने नहीं होते। कुछ लोगों में कुछ समय के लिए एकटक देखना, अचानक उलझन, जवाब न देना, या होंठ चबाना या हाथ हिलाना जैसी हरकतें दिख सकती हैं। कुछ लोगों को अजीब गंध महसूस होना, आँखों के सामने कुछ अलग दिखना, या पेट में ऊपर की ओर उठने जैसा एहसास (ऑरा) हो सकता है। गंभीर मामलों में व्यक्ति बेहोश हो सकता है, शरीर अकड़ सकता है, झटके आ सकते हैं और बाद में बहुत थकान या भ्रम महसूस हो सकता है। इन लक्षणों को जल्दी पहचानकर डॉक्टर से संपर्क करने से दौरों की संख्या कम हो सकती है और लंबे समय में बेहतर परिणाम मिलते हैं।
आज भी कई मिथक मौजूद हैं। दौरे किसी आत्मा के सवार होने या कर्मों की वजह से नहीं होते, बल्कि इनके कारण जेनेटिक समस्या, सिर में चोट, दिमाग का इंफेक्शन, स्ट्रोक या कभी-कभी अज्ञात कारण हो सकते हैं। इसी तरह, दौरे के समय मुँह में चाबी या पानी डालना खतरनाक और गलत है। सही प्राथमिक उपचार यह है कि व्यक्ति को करवट पर लिटाएँ, आसपास की खतरनाक चीजें हटा दें, उसे पकड़कर न रोकें, मुँह में कुछ न डालें और अगर दौरा पाँच मिनट से ज्यादा चले तो तुरंत डॉक्टर की मदद लें।
सामाजिक कलंक आज भी एक बड़ी समस्या है, जिससे पढ़ाई, नौकरी और शादी के अवसर प्रभावित होते हैं—खासकर महिलाओं के लिए। डर की वजह से कई परिवार बीमारी को छिपाते हैं, जिससे इलाज में देरी हो जाती है। जबकि सही दवाइयों और नियमित फॉलो-अप से 70–80% मिर्गी के मरीज पूरी तरह दौरों से मुक्त होकर सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
मिर्गी एक इलाज योग्य मेडिकल बीमारी है, कोई सामाजिक कलंक नहीं। जागरूकता, वैज्ञानिक जानकारी, संवेदनशीलता और समय पर इलाज से डर की जगह समझ बढ़ाई जा सकती है और मिर्गी के साथ जी रहे लोगों को सम्मान और समान अवसर मिल सकते हैं।
